माँ मौली देवी मंदिर सिंगारपुर-पर्यटन स्थल के कुछ अनजाने किवदंतियां

सिंगारपुर छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के भाटापारा की तहसील का एक गाँव है। सिंगारपुर अपनी तहसील मुख्य शहर भाटापारा से 11.8 किमी दूर है, जिला मुख्यालय बलौदाबाजार से 34.8 किमी दूर है और इसकी राजधानी रायपुर से 75 किमी दूर है। सिंगारपुर में, देवी मौली माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि शिव, ब्रह्मा और विष्णु की इच्छा से मौली माता यहां प्रकट हुई थीं। माता मौली की मूर्ति प्राचीन काल में स्थापित की गई थी।

400 साल पुरानी माता के भक्त देश में ही नहीं विदेशों में भी है। लोग मन की मनौती के लिए यहां हर साल 10000 के लगभग  ज्योत जलाते आ रहे हैं। मां मावली के मंदिर के संबंध में कई प्रकार की धारणाएं है।मान्यता है कि मंदिर के प्रांगण में स्थित कुंड के पानी में नहाने के बाद माता के दर्शन करने से रोग-दोष सहित सभी दुख दूर हो जाते हैं। भाटापार शहर से लगभग 12 किलोमीटर दूर ग्राम सिंगारपुर में मां मावली माता का मंदिर स्थित है। हर साल नवरात्र में माता की विशेष श्रृंगार को देखने हर पूरे नौ दिन भक्तों का तांता लगा रहता है। पढि़ए पूरी खबर..

माँ मावली मंदिर की स्थापना के सम्बन्ध में 
इस मंदिर एवं माता की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। किवदंतियों के अनुसार मां मावली का मंदिर कब और किसने बनाया इसका कोई ठोस प्रमाण आज तक नहीं मिला है। लोगों का कहना है कि लगभग 400 वर्ष पहले कोढ़ से पीड़ित एक व्यक्ति जब वहां घने जंगल होते थे तब वनोपज  की तलाश में वहां गया तो उस जंगल में स्थित छोटे कुंड में नहाने से उनका कोढ़ अगले दिन ठीक हो गया था, तब उसके द्वारा कुंद में तलाश करने पर माँ मावली की की मूर्ति दिखी जिसे उसी कुंड के किनारे स्थापित किया गया ,तथा उक्त कुंड आज तालाब / सागर के रूप में विद्यमान है. मां मावली का मंदिर 350 से 400 वर्ष पुराना हो सकता है। आज के समय में तरेंगा के महामाया मंदिर और सिंगारपुर मां मावली की ख्याति लगातार बढ़ती ही जा रही है। प्राचीन काल से ही दोनों स्थानों पर गोड़ जाति Ganjan, Gulal Dayna mata  अर्चना किया करते थे, और आज भी मावली मां की पूजा अर्चना उन्हीं गोड़ पुजारियों के वंशज करते आ रहे हैं।
Facebook-माँ मावली सिंगारपुर

मां मावली मंदिर के नीचे एक बावली है। इसे लेकर मान्यता कि किसी भी प्रकार कीट प्रकोप अथवा महामारी फैलने पर बावली का पानी ले जाकर छिड़काव करने से प्रकोप दूर हो जाता है।
पूर्व में यहां पर प्रत्येक नवरात्रि के नवमी पर मां के समक्ष बलि चढ़ाए जाने की प्रथा थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से जैन साधुओं के अनुरोध और प्रशासन के हस्तक्षेप से बलि चढ़ाने का कार्य बंद कर दिया गया है।
यहां पर प्रत्येक नवरात्र पर श्रद्धालु भक्तों द्वारा मनोकामना ज्योति कलश जलाई जाती है। भारत सहित विदेशों में बसे लोग भी ज्योति कलश स्थापित कराते हैं।

इसमें आस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा एवं यूरोप जैसे देश में रहने वाले भारतीय शामिल है । नवरात्रि पर यहां विशेष पूजा की जाती है। प्रतिदिन सैकड़ों लोग मंदिर में मनोकामना लेकर देवी दर्शन के लिए आते हैं।


नवरात्रि पर यहां नौ दिनों का मेला                                                                                                             
मां मावली के दर्शन के लिए प्रशासन द्वारा कोई ठोस व्यवस्था नहीं की जाती है। सिंगारपुर के युवा और मंदिर में देखरेख करने वाले ट्रस्ट के सदस्य ही पूरी व्यवस्था करते हैं।
मंत्री शासन  ने सिंगारपुर को मिनी तीर्थाटन एवं पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा की थी,I पिछले कुछ वर्षों से ट्रस्ट  द्वारा नवरात्रि के अवसर पर मावली महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है।

मनौतियां पूर्ण होने के परिणाम                                                                                                                   
अंचल सहित कोलकाता, बालाघाट, अमरावती, शिवनी, नागपुर, बांदा और उत्तर प्रदेश के कई शहरों सहित विदेशों में बसे श्रद्धालुओं द्वारा मनोकामना ज्योति कलश जलाई जाती है।
अब मंदिर के देखभाल के लिए एक ट्रस्ट का गठन कर दिया गया है। ट्रस्ट के माध्यम से ही मंदिर का रखरखाव किया जा रहा है। ओडिशा के कारीगरों को बुलाकर मां मावली के मंदिर को भव्य रूप दिया गया है। गोड़ समाज ने जहां अपने आराध्य देवी मानकर धर्मशाला का निर्माण कराया है।
 वहीं, अहीर समाज का लक्ष्मीनारायण मंदिर, झेरिया यादव समाज, देवांगन समाज का राम जानकी मंदिर, कुर्मी बया, सतनामी समाज आदि विभिन्न समाजों द्वारा निर्मित 18 से 20 भव्य मंदिर है।

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