पितृ पक्ष में श्राद्ध के वैदिक पररंपरा



पितरों को तृप्‍त करने और उनकी आत्‍मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध किया जाता है


वैदिक पररंपरा के अनुसार आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक की तिथि को पितृपक्ष कहा जाता है. इस समय 15 दिनों तक अपने पितरों का श्राद्ध कर्म किया जाता है. पितृकर्म में किए गए श्राद्ध से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है. सनातन वैदिक धर्म में ऐसी मान्यता है कि इन 15 दिनों में पितर मृत्यु लोक से पृथ्वी पर आते हैं.हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है. इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं. जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है.

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तथा उस उर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है.

भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं-

पितृ ऋण,

देव ऋण

ऋषि ऋण.

पितृऋण है सर्वोपरि

पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया.पितृपक्ष में हिन्दू लोग मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीते हैं. पितरों को स्मरण करके जल चढाते हैं. निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देते हैं. पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में मृत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है.


श्राद्ध की तिथियाँ

14 सितंबर- प्रतिपदा
15 सितंबर- द्वितीया
16 सितंबर- तृतीया
17 सितंबर- चतुर्थी
18 सितंबर- पंचमी महा भरणी
19 सितंबर- षष्ठी
20 सितंबर- सप्तमी
21 सितंबर- अष्टमी
22 सितंबर- नवमी
23 सितंबर- दशमी
24 सितंबर- एकादशी
25 सितंबर- द्वादशी
26 सितंबर- त्रयोदशी, मघा श्राद्ध
27 सितंबर- चतुर्दशी श्राद्ध
28 सितंबर- पितृ विसर्जन, सर्वपितृ अमावस्या।

श्राद्ध के नियम पितृपक्ष में हर दिन तर्पण करना चाहिए. पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण किया जाता है.
इस दौरान पिंड दान करना चाहिए. श्राद्ध कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं. पिंड को शरीर का प्रतीक माना जाता है.

श्राद्ध में ये काम नही करना चाहिए


इस दौरान कोई भी शुभ कार्य, विशेष पूजा-पाठ और अनुष्‍ठान नहीं करना चाहिए. हालांकि देवताओं की नित्‍य पूजा को बंद नहीं करना चाहिए.
श्राद्ध के दौरान पान खाने, तेल लगाने की मनाही है.
इस दौरान रंगीन फूलों का इस्‍तेमाल भी वर्जित है.
पितृ पक्ष में चना, मसूर, बैंगन, हींग, शलजम, मांस, लहसुन, प्‍याज और काला नमक भी नहीं खाया जाता है.
इस दौरान कई लोग नए वस्‍त्र, नया भवन, गहने या अन्‍य कीमती सामान नहीं खरीदते हैं.


पितृ पक्ष में किस दिन करें श्राद्ध?

दिवंगत परिजन की मृत्‍यु की तिथ‍ि में ही श्राद्ध किया जाता है. यानी कि अगर परिजन की मृत्‍यु प्रतिपदा के दिन हुई है तो प्रतिपदा के दिन ही श्राद्ध करना चाहिए. आमतौर पर पितृ पक्ष में इस तरह श्राद्ध की तिथ‍ि का चयन किया जाता है:
- जिन परिजनों की अकाल मृत्‍यु या किसी दुर्घटना या आत्‍महत्‍या का मामला हो तो श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है.
- दिवंगत पिता का श्राद्ध अष्‍टमी के दिन और मां का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है.
- जिन पितरों के मरने की तिथि याद न हो या पता न हो तो अमावस्‍या के दिन श्राद्ध करना चाहिए.
- अगर कोई महिल सुहागिन मृत्‍यु को प्राप्‍त हुई हो तो उसका श्राद्ध नवमी को करना चाहिए.
- संन्‍यासी का श्राद्ध द्वादशी को किया जाता है.

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