दवा कम्पनियां ब्रांडेड दवा से बड़ा मुनाफा के चक्कर में जेनेरिक दवाओं पर फैलाया है भ्रम !




सामान्य दवा या जेनेरिक दवा (generic drug) वह दवाहै जो बिना किसी पेटेंट के बनायी और वितरित की जाती है। जेनेरिक दवा के फॉर्मुलेशन पर पेटेंट हो सकता है किन्तु उसके सक्रिय घटक (active ingradient) पर पेटेंट नहीं होता। जैनरिक दवाईयां गुणवत्ता में किसी भी प्रकार के ब्राण्डेड दवाईयों से कम नहीं होतीं तथा ये उतनी ही असरकारक है, जितनी की ब्राण्डेड दवाईयाँ। यहाँ तक कि उनकी मात्रा (डोज), साइड-इफेक्ट, सक्रिय तत्व आदि सभी ब्रांडेड दवाओं के जैसे ही होते हैं। जैनरिक दवाईयों को बाजार में उतारने का लाईसेंस मिलने से पहले गुणवत्ता मानकों की सभी सख्त प्रक्रियाओं से गुजरना होता है।

किसी रोग विशेष की चिकित्सा के लिए तमाम शोधों के बाद एक रासायनिक तत्‍व/यौगिक विशेष दवा के रूप में देने की संस्तुति की जाती है। इस तत्‍व को अलग-अलग कम्पनियाँ अलग-अलग नामों बेचतीं है। जैनरिक दवाईयों का नाम उस औषधि में उपस्थित सक्रिय घटक के नाम के आधार पर एक विशेषज्ञ समिति द्वारा निर्धारित किया जाता है। किसी दवा का जेनेरिक नाम पूरे विश्व में एक ही होता है।

उदाहरण के लिए, उच्छ्रायी दुष्क्रिया (शिश्न को खड़ा न कर पाना / erectile dysfunction) की चिकित्सा के लिए सिल्डेन्फिल (sildenafil) नाम की जेनेरिक दवा है। यही दवा फिजर (Pfizer) नामक कम्पनी वियाग्रा (Viagra) नाम से बेचती है।

अधिकांश बड़े शहरों में जेनेरिक मेडिकल स्टोर होते हैं जहाँ केवल जेनेरिक दवाएँ ही मिलतीं हैं। किन्तु इनका व्यापक प्रचार नहीं होने से लोगों को इनका लाभ नहीं मिलता।

किसी भी बीमारी के लिए डॉक्टर जो दवा लिखता है, ठीक उसी दवा के सॉल्ट वाली जेनेरिक दवाएं उससे काफी कम कीमत पर आपको मिल सकती हैं। कीमत का यह अंतर पांच से दस गुना तक हो सकता है। बात सिर्फ आपके जागरूक होने की है। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि देश में लगभग सभी नामी दवा कम्पनियां ब्रांडेड के साथ-साथ कम कीमत वाली जेनेरिक दवाएं भी बनाती हैं लेकिन ज्यादा लाभ के चक्कर में डॉक्टर और कंपनियां लोगों को इस बारे में कुछ बताते नहीं हैं और जानकारी के अभाव में गरीब भी केमिस्ट से महंगी दवाएं खरीदने को विवश हैं।

गौरतलब है कि किसी एक बीमारी के लिए तमाम शोधों के बाद एक रासायनिक यौगिक को विशेष दवा के रूप में देने की संस्तुति की जाती है। इस यौगिक को अलग-अलग कम्पनियां अलग-अलग नामों से बेचती हैं। जेनेरिक दवाइयों का नाम उसमें उपस्थित सक्रिय यौगिक के नाम के आधार पर एक विशेषज्ञ समिति निर्धारित करती है। किसी भी दवा का जेनेरिक नाम पूरे विश्व में एक ही होता है।

जेनेरिक दवा बिना किसी पेटेंट के बनाई और वितरित की जाती हैं यानी जेनेरिक दवा के फॉर्मुलेशन पर पेटेंट हो सकता है किन्तु उसकी सामग्री पर पेटेंट नहीं हो सकता। अंतरराष्ट्रीय मानकों से बनी जेनेरिक दवाइयों की गुणवत्ता ब्रांडेड दवाइयों से कम नहीं होती, जिनकी आपूर्ति दुनियाभर में भी की जाती है और यह भी उतना ही असर करती हैं जितना ब्रांडेड दवाएं करती हैं। उनकी डोज, साइड- इफेक्ट, सामग्री आदि सभी ब्रांडेड दवाओं के एकदम समान होती हैं। उदाहरण के लिए पुरुषों में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के इलाज के लिए सिल्डेन्फिल नाम की जेनेरिक दवा होती है जिसे फाइजर कम्पनी वियाग्रा नाम से बेचती है।

जेनेरिक दवाइयों को भी बाजार में लाने का लाइसेंस मिलने से पहले गुणवत्ता मानकों की सभी सख्त प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। इन दवाओं के प्रचार-प्रसार पर कंपनियां कुछ खर्च नहीं करती। जेनेरिक दवाओं के मूल्य निर्धारण पर सरकारी अंकुश होता है, इसलिए वे सस्ती होती हैं, जबकि पेटेंट दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं, इसलिए वे महंगी होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि यदि डॉक्टर मरीज को जेनेरिक दवाइयों की सलाह देने लगें तो केवल धनी देशों में चिकित्सा व्यय पर 70 प्रतिशत तक कमी आ जायेगी तथा गरीब देशों के चिकित्सा व्यय में यह कमी और भी ज्यादा होगी।

कई बार तो ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं की कीमतों में नब्बे प्रतिशत तक का फर्क होता है। जैसे यदि ब्रांडेड दवाई की 14 गोलियों का एक पत्ता 786 रुपये का है, तो एक गोली की कीमत करीब 55 रुपये हुई। इसी सॉल्ट की जेनेरिक दवा की 10 गोलियों का पत्ता सिर्फ 59 रुपये में ही उपलब्ध है, यानी इसकी एक गोली करीब 6 रुपये में ही पड़ेगी। खास बात यह है कि किडनी, यूरिन, बर्न, दिल संबंधी रोग, न्यूरोलोजी, डायबिटीज जैसी बीमारियों में तो ब्रांडेड व जेनेरिक दवा की कीमत में बहुत ही ज्यादा अंतर देखने को मिलता है।

दवा कम्पनियां ब्रांडेड दवा से बड़ा मुनाफा कमाती हैं। दवाओं की कंपनियां अपने मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्ज के जरिए डॉक्टरों को अपनी ब्रांडेड दवा लिखने के लिए खासे लाभ देती हैं। इसी आधार पर डॉक्टरों के नजदीकी मेडिकल स्टोर को दवा की आपूर्ति होती है। यही वजह है कि ब्रांडेड दवाओं का कारोबार दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। यही वजह है कि डॉक्टर जेनेरिक दवा लिखते ही नहीं हैं। जानकारी होने पर कोई व्यक्ति अगर केमिस्ट की दुकान से जेनेरिक दवा मांग भी ले तो दवा विक्रेता इनकी उपलब्धता से इंकार कर देते हैं।

देश के ज्यादातर बड़े शहरों में एक्सक्लुसिव जेनेरिक मेडिकल स्टोर होते हैं, लेकिन इनका व्यापक प्रचार नहीं होने से लोगों को इनका फायदा नहीं मिलता आजकल हर प्रकार की जानकारी इंटरनेट के जरिये आसानी से हासिल की जा सकती है। ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं की कीमत में अंतर का पता लगाने के लिए एक मोबाइल एप 'समाधान और हैल्थकार्ट भी बाजार में उपलब्ध है। दरकार है कि आज लोग जेनेरिक दवाओं के बारे में जानें और खासतौर पर गरीबों को इस ओर जागरूक करें ताकि वे दवा कंपनियों के मकडज़ाल में न फंसें।

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