तुरतुरिया एक प्राकृतिक एवं धार्मिक स्थल
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhlYnzrtwE7E_KlEY3Lu4aE2b6VpvrHLThp3UtL8tdiLi20nE9SBGb__ZwncPneaJ3yf4AVstXoD1ePDGBf-eWxjwtX5aEXYfxGiu9CcZcPU5kTUza1orpJsYE0y8Gi1zUfMPinjjN5toc/s640/photo-92-180305-1.jpg)
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgK03mDJ31uWnYc6i9nKZxlnp7fz_U08DTwbSGxLxQKga5gWVohRqLXKJ4hQxYcyv4LQypfyHgje_YOo_71klXIBe3w_zVC9JSfUSaBPKGlyc2vTKOnR_VoA99f-5Ycd7ejn__KEj66tvQ/s640/DSGRQg7UQAEH9Bc.jpg)
इस स्थल का नाम तुरतुरिया पड़ने का कारण यह है कि बलभद्री नाले का जलप्रवाह चट्टानों के माध्यम से होकर निकलता है तो उसमें से उठने वाले बुलबुलों के कारण तुरतुर की ध्वनि निकलती है। जिसके कारण उसे तुरतुरिया नाम दिया गया है। इसका जलप्रवाह एक लम्बी संकरी सुरंग से होता हुआ आगे जाकर एक जलकुंड में गिरता है जिसका निर्माण प्राचीन ईटों से हुआ है। जिस स्थान पर कुंड में यह जल गिरता है वहां पर एक गाय का मोख बना दिया गया है जिसके कारण जल उसके मुख से गिरता हुआ दृष्टिगोचर होता है। गोमुख के दोनों ओर दो प्राचीन प्रस्तर की प्रतिमाए स्थापित हैं जो कि विष्णु जी की हैं इनमें से एक प्रतिमा खडी हुई स्थिति में है तथा दूसरी प्रतिमा में विष्णुजी को शेषनाग पर बैठे हुए दिखाया गया है।
इस स्थल पर बौध्द, वैष्णव तथा शैव धर्म से संबंधित मूर्तियों का पाया जाना भी इस तथ्य को बल देता है कि यहां कभी इन तीनों संप्रदायो की मिलीजुली संस्कृति रही होगी। ऎसा माना जाता है कि यहां बौध्द विहार थे जिनमे बौध्द भिक्षुणियों का निवास था। सिरपुर के समीप होने के कारण इस बात को अधिक बल मिलता है कि यह स्थल कभी बौध्द संस्कृति का केन्द्र रहा होगा। यहां से प्राप्त शिलालेखों की लिपि से ऎसा अनुमान लगाया गया है कि यहां से प्राप्त प्रतिमाओं का समय 8-9 वीं शताब्दी है। आज भी यहां स्त्री पुजारिनों की नियुक्ति होती है जो कि एक प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है। पूष माह में यहां तीन दिवसीय मेला लगता है तथा बड़ी संख्या में श्रध्दालु यहां आते हैं। धार्मिक एवं पुरातात्विक स्थल होने के साथ-साथ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी यह स्थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।