छत्तीसगढ का खजुराहो भोरमदेव मंदिर।
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Hello! दोस्तो आज हम एक ऐसे सुंदरता के बारे में बात करने जा रहे है जिसे देखने लोग दूर दूर से आते है । छत्तीसगढ़ राज्य के खजुराहो कहे जाने वाले भोरमदेव मंदिर का जोकि जनजातीय संस्कृति, स्थापत्य कला और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है। इस दृश्य को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते है।
हर दीवार और स्तम्भ में लोग बस एक ही काम में व्यस्त हैं और वो है प्रेम क्रीड़ा. स्त्री-पुरुष के परम प्रेम की परिणिति काम-क्रीडा को परिलक्षित करती. वहीं यहाँ की दीवारें मानों कह रही हों कि प्रेम और प्रेम अहसास बस यहीं है यहाँ की मूर्तियों में.
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भारत का हर एक राज्य अपनी किसी न किसी खास चीज के लिए प्रसिद्ध है. इसी कड़ी में अगर छत्तीसगढ़ की बात करें, तो वहां का भोरमदेव मंदिर खासा आकर्षण का केंद्र रहा है, जोकि जनजातीय संस्कृति, स्थापत्य कला और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है.चूंकि, भोरमदेव के मंदिर की तुलना मध्य प्रदेश के खजुराहो और ओडिशा के सूर्य मंदिर से की जाती है. ऐसे में इसको जानना दिलचस्प रहेगा। भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ के कबीरधाम जिले में कबीरधाम से 18 कि॰मी॰ दूर तथा रायपुर से 125 कि॰मी॰ दूर चौरागाँव में एक हजार वर्ष पुराना मंदिर है।
मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर नागर शैली का एक सुन्दर उदाहरण है। मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर एक पाँच फुट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है। तीनो प्रवेश द्वारो से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौडाई 40 फुट है। मंडप के बीच में में 4 खंबे है तथा किनारे की ओर 12 खम्बे है जिन्होने मंदप की छत को संभाल रखा है। सभी खंबे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक है। प्रत्येक खंबे पर कीचन बना हुआ है। मंदिर के गर्भगृह में अनेक मुर्तियां रखी है तथा इन सबके बीच में एक काले पत्थर से बना हुआ शिवलिंग स्थापित है।
मंदिर के चारो ओर बाहरी दीवारो पर विश्नु, शिव चामुंडा तथा गणेश आदि की मुर्तियां लगी है। इसके साथ ही लक्ष्मी विश्नु एवं वामन अवतार की मुर्ति भी दीवार पर लगी हुई है। देवी सरस्वती की मुर्ति तथा शिव की अर्धनारिश्वर की मुर्ति भी यहां लगी हुई है
मंदिर की कलाकृति
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छत्तीसगढ़ का भोरमदेव, जहाँ कामकला में सराबोर मूर्तिया बरबस ही इंसान को हजारों साल पहले के भारत में ले जाती हैं. भोरमदेव मंदिर की मान्यता सिर्फ इसलिए नहीं की वह एक मंदिर है और वहां शिवजी भोरमदेव के रूप में विराजते हैं.
इससे बढ़कर इसकी मान्यता इसलिए भी है, क्योंकि इसका धार्मिक और पुरातात्विक महत्त्व भी है. भोरमदेव का मंदिर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के गृहग्राम कवर्धा जिले से मात्र से 18 किलोमीटर की दूरी पर सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है. इसके पूर्व की में मैकल पर्वत श्रृंखलाएं, जो इसे और भी सुरम्य बनाती हैं.
कवर्धा एक छोटा सा जिला है, जो अपने में किसी बड़े शहर के मानिंद खूबसूरती समेटे है. इसी कवर्धा से भोरमदेव मंदिर का रास्ता है, जो हराभरा और शांत है. धीरे-धीरे घने होते वन और उनके बीच सिमटता मंदिर सच में स्वर्ग का अहसास करवाता है.
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मुख्य मंदिर दो भागों में विभाजित है. इसके बड़े भाग यानि मुख मंडप में शिवलिंग है , जो एक ऊँचे मंच पर स्थित है. यहाँ शिवलिंग पूर्व मुखी है. शिव के अलावा भगवान विष्णु और उनके कई अवतार जैसे नरसिंह, वामन, नटराज, कृष्ण आदि की मूर्तिया हैं. साथ ही भगवान गणेश, काल भैरव और सूर्य भी यहां देखने को मिलते हैं.
इस मंदिर का सौंदर्य आपको खजुराहो, अन्जनता एलोरा और कोणार्क की याद दिलाता है. यही कारण है कि बोलचाल की भाषा ने इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहों भी कह दिया जाता है. यहां की कामुक मुद्रा वाली मूर्तियां, जो यकीनन काफी सुंदर हैं.
इस मंदिर में बाहर की ओर 54 की संख्या में मूर्तियाँ है, जो कामसूत्र के विभिन्न आसनों से प्रेरित हैं. कई लोग इसको शाश्वत प्रेम और सुंदरता का प्रतीक मानते हैं, तो कई इनकी कला को देखकर अभिभूत होते हैं. इस मंदिर के आधार पर नागवंशी शासकों को खजुराहो के शासकों के समकालीन माना जा सकता है.
मंदिर में जो भी निर्माण कार्य है किए गए है, उन्हें देखकर ऐसा लगता है, जैसे मानो वह खजुराहो से प्रेरित हैं. हालांकि, यह कितना सच यह कुछ नहीं कहा जा सकता।
यह मंदिर 11 शताब्दी के आसपास बना कला का बेहतरीन का नमूना हैं. अगर शैली की बात की जाए, तो इसके हर भाग में कलाकृतियां बारीकी से उकेरी गयी हैं.मंदिर में सिर्फ कामुक मूर्तियाँ ही नहीं, बल्कि उस काल का पूरा जीवन दिखता है.
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भोरमदेव मंदिर की स्थापत्य चंदेल शैली है. खजुराहो और कोणार्क के सूर्य मंदिर के समान यहाँ भी मंदिर की बाहरी दीवारों पर तीन समानांतर क्रम में विभिन्न प्रतिमाओं को उकेरा गया है!
हर दीवार और स्तम्भ में लोग बस एक ही काम में व्यस्त हैं और वो है प्रेम क्रीड़ा. स्त्री-पुरुष के परम प्रेम की परिणिति काम-क्रीडा को परिलक्षित करती. वहीं यहाँ की दीवारें मानों कह रही हों कि प्रेम और प्रेम अहसास बस यहीं है यहाँ की मूर्तियों में.
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सम्भोग तो है पर साथ ही नाच, गाना, भक्ति और वो सब मुद्राएं हैं, जो खुशहाल जीवन का प्रतीक होती हैं. नाचते गाते आदिवासी उस काल के जीवन-दर्शन को दिखाते हैं, जहां कोई भेदभाव भाव नहीं था. सब साथ मिलकर नाच गाकर उत्सव मानते दिखते हैं.
तो दोस्तो ये थी छत्तीसगढ़ की सुंदरता का एक रूप आशा करता हु की आपको ये जानकारी अच्छी लगी होगी और आगे आप यह जाने का प्लान बनाएंगे यह कि खूबसूरती का मजा उठाने और अगर ये जानकारी आपको अच्छी लगी तो like👍 और comment जरूर कीजिये ताकि आगे हुम् इशी तरह नई-नई जानकारियाँ आपके लिए लाते रहे।
धन्यवाद☺️
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भारत का हर एक राज्य अपनी किसी न किसी खास चीज के लिए प्रसिद्ध है. इसी कड़ी में अगर छत्तीसगढ़ की बात करें, तो वहां का भोरमदेव मंदिर खासा आकर्षण का केंद्र रहा है, जोकि जनजातीय संस्कृति, स्थापत्य कला और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है.चूंकि, भोरमदेव के मंदिर की तुलना मध्य प्रदेश के खजुराहो और ओडिशा के सूर्य मंदिर से की जाती है. ऐसे में इसको जानना दिलचस्प रहेगा। भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ के कबीरधाम जिले में कबीरधाम से 18 कि॰मी॰ दूर तथा रायपुर से 125 कि॰मी॰ दूर चौरागाँव में एक हजार वर्ष पुराना मंदिर है।
मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर नागर शैली का एक सुन्दर उदाहरण है। मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर एक पाँच फुट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है। तीनो प्रवेश द्वारो से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौडाई 40 फुट है। मंडप के बीच में में 4 खंबे है तथा किनारे की ओर 12 खम्बे है जिन्होने मंदप की छत को संभाल रखा है। सभी खंबे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक है। प्रत्येक खंबे पर कीचन बना हुआ है। मंदिर के गर्भगृह में अनेक मुर्तियां रखी है तथा इन सबके बीच में एक काले पत्थर से बना हुआ शिवलिंग स्थापित है।
मंदिर के चारो ओर बाहरी दीवारो पर विश्नु, शिव चामुंडा तथा गणेश आदि की मुर्तियां लगी है। इसके साथ ही लक्ष्मी विश्नु एवं वामन अवतार की मुर्ति भी दीवार पर लगी हुई है। देवी सरस्वती की मुर्ति तथा शिव की अर्धनारिश्वर की मुर्ति भी यहां लगी हुई है
मंदिर की कलाकृति
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छत्तीसगढ़ का भोरमदेव, जहाँ कामकला में सराबोर मूर्तिया बरबस ही इंसान को हजारों साल पहले के भारत में ले जाती हैं. भोरमदेव मंदिर की मान्यता सिर्फ इसलिए नहीं की वह एक मंदिर है और वहां शिवजी भोरमदेव के रूप में विराजते हैं.
इससे बढ़कर इसकी मान्यता इसलिए भी है, क्योंकि इसका धार्मिक और पुरातात्विक महत्त्व भी है. भोरमदेव का मंदिर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के गृहग्राम कवर्धा जिले से मात्र से 18 किलोमीटर की दूरी पर सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है. इसके पूर्व की में मैकल पर्वत श्रृंखलाएं, जो इसे और भी सुरम्य बनाती हैं.
कवर्धा एक छोटा सा जिला है, जो अपने में किसी बड़े शहर के मानिंद खूबसूरती समेटे है. इसी कवर्धा से भोरमदेव मंदिर का रास्ता है, जो हराभरा और शांत है. धीरे-धीरे घने होते वन और उनके बीच सिमटता मंदिर सच में स्वर्ग का अहसास करवाता है.
भगवान शिव का बसेरा
मड़वा महल
भोरमदेव के बारे में मान्यता है कि वह शिव के ही एक अन्य रूप हैं, जो गोंड समुदाय के पूजनीय देव थे. इन्ही भोरमदेव के नाम से इस मंदिर का निर्माण हुआ. इसके आस पास और भी देवताओं जैसे वैष्णव, बौद्ध और जैन प्रतिमाएं भी हैं. किन्तु, शिव के मंदिर की भव्यता यह साबित करने के लिए काफी है कि इस मंदिर के निर्माता नागवंशी शासक शिव के परम भक्त थे. शायद यही कारण है कि यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. भगवान शिव यहां भी शिवलिंग रूप में विराजमान हैं.मुख्य मंदिर दो भागों में विभाजित है. इसके बड़े भाग यानि मुख मंडप में शिवलिंग है , जो एक ऊँचे मंच पर स्थित है. यहाँ शिवलिंग पूर्व मुखी है. शिव के अलावा भगवान विष्णु और उनके कई अवतार जैसे नरसिंह, वामन, नटराज, कृष्ण आदि की मूर्तिया हैं. साथ ही भगवान गणेश, काल भैरव और सूर्य भी यहां देखने को मिलते हैं.
गढ़ो का राज्य
कहा जाता है कि अपने छत्तीसगढ़ गढ़ों यानि किलों के कारण छत्तीसगढ़ का नाम पड़ा. स्थापत्य कला के अनेक उदाहरण आपको यहाँ देखने को मिल जाएंगे. किन्तु, भोरमदेव की स्थापत्य कला उन सबसे जुदा है.इस मंदिर का सौंदर्य आपको खजुराहो, अन्जनता एलोरा और कोणार्क की याद दिलाता है. यही कारण है कि बोलचाल की भाषा ने इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहों भी कह दिया जाता है. यहां की कामुक मुद्रा वाली मूर्तियां, जो यकीनन काफी सुंदर हैं.
इस मंदिर में बाहर की ओर 54 की संख्या में मूर्तियाँ है, जो कामसूत्र के विभिन्न आसनों से प्रेरित हैं. कई लोग इसको शाश्वत प्रेम और सुंदरता का प्रतीक मानते हैं, तो कई इनकी कला को देखकर अभिभूत होते हैं. इस मंदिर के आधार पर नागवंशी शासकों को खजुराहो के शासकों के समकालीन माना जा सकता है.
मंदिर में जो भी निर्माण कार्य है किए गए है, उन्हें देखकर ऐसा लगता है, जैसे मानो वह खजुराहो से प्रेरित हैं. हालांकि, यह कितना सच यह कुछ नहीं कहा जा सकता।
यह मंदिर 11 शताब्दी के आसपास बना कला का बेहतरीन का नमूना हैं. अगर शैली की बात की जाए, तो इसके हर भाग में कलाकृतियां बारीकी से उकेरी गयी हैं.मंदिर में सिर्फ कामुक मूर्तियाँ ही नहीं, बल्कि उस काल का पूरा जीवन दिखता है.
प्रेम उत्सव! दीवारे भक्ति का प्रतीक
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भोरमदेव मंदिर की स्थापत्य चंदेल शैली है. खजुराहो और कोणार्क के सूर्य मंदिर के समान यहाँ भी मंदिर की बाहरी दीवारों पर तीन समानांतर क्रम में विभिन्न प्रतिमाओं को उकेरा गया है!
हर दीवार और स्तम्भ में लोग बस एक ही काम में व्यस्त हैं और वो है प्रेम क्रीड़ा. स्त्री-पुरुष के परम प्रेम की परिणिति काम-क्रीडा को परिलक्षित करती. वहीं यहाँ की दीवारें मानों कह रही हों कि प्रेम और प्रेम अहसास बस यहीं है यहाँ की मूर्तियों में.
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सम्भोग तो है पर साथ ही नाच, गाना, भक्ति और वो सब मुद्राएं हैं, जो खुशहाल जीवन का प्रतीक होती हैं. नाचते गाते आदिवासी उस काल के जीवन-दर्शन को दिखाते हैं, जहां कोई भेदभाव भाव नहीं था. सब साथ मिलकर नाच गाकर उत्सव मानते दिखते हैं.
तो दोस्तो ये थी छत्तीसगढ़ की सुंदरता का एक रूप आशा करता हु की आपको ये जानकारी अच्छी लगी होगी और आगे आप यह जाने का प्लान बनाएंगे यह कि खूबसूरती का मजा उठाने और अगर ये जानकारी आपको अच्छी लगी तो like👍 और comment जरूर कीजिये ताकि आगे हुम् इशी तरह नई-नई जानकारियाँ आपके लिए लाते रहे।
धन्यवाद☺️
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