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शिवनाथ नदी के बीचों-बीच पर्यटन की अनूठी जगह मदकू द्वीप दो धर्म और आस्था का संगम स्थल

अपना भाटापारा देखो दुनिया लेकिन हमारे भाटापारा के नजरिये से ............

परम प्रेम की परिणिति काम-क्रीडा को परिलक्षित करती छत्तीसगढ का खजुराहो भोरमदेव मंदिर।

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शिवरीनारायण का मंदिर माता शबरी का आश्रम छत्तीसगढ़-इतिहास के पन्नो में

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प्रेम का लाल प्रतीक लक्ष्मण मंदिर...........

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ताला की विलक्षण प्रतिमा-देवरानी जेठानी मंदिर

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रविवार, 18 सितंबर 2022

आज पुण्य तिथि पर बस्तर के शेरो से खेलने वाले बच्चे टाइगर बॉय चेंदरू का स्मरण

शकुंतला-दुष्यंत के पुत्र भरत बाल्यकाल में शेरों के साथ खेला करते थे वैसे ही बस्तर का यह लड़का शेरों के साथ खेलता था। इस लड़के का नाम था चेंदरू। चेंदरू द टायगर बाय के नाम से मशहुर चेंदरू पुरी दुनिया के लिये किसी अजुबे से कम नही था। बस्तर मोगली नाम से चर्चित चेंदरू पुरी दुनिया में 60 के दशक में बेहद ही मशहुर था। 

चेंदरू मंडावी नारायणपुर के गढ़ बेंगाल का रहने वाला था। मुरिया जनजाति का यह लड़का बड़ा ही बहादुर था। बचपन में इसके दादा ने जंगल से शेर के शावक को लाकर इसे दे दिया था। चेंदरू ने उसका नाम टेंबू रखा था। इन दोनो की पक्की दोस्ती थी।

 दोनो साथ मे ही खाते , घुमते और खेलते थे। इन दोनो की दोस्ती की जानकारी धीरे धीरे पुरी दुनिया में फैल गयी। स्वीडन के ऑस्कर विनर फिल्म डायरेक्टर आर्ने सक्सडॉर्फ चेंदरू पर फिल्म बनाने की सोची और पूरी तैयारी के साथ बस्तर पहुंच गए।

उन्होंने चेंदरू को ही फिल्म के हीरो का रोल दिया और यहां रहकर दो साल में शूटिंग पूरी की। 1957 में फिल्म रिलीज हुई. एन द जंगल सागा जिसे इंग्लिश में दि फ्लूट एंड दि एरो के नाम से जारी किया गया।

फिल्म के रिलीज होने के बाद चेंदरू को भी स्वीडन और बाकी देशों में ले जाया गया। उस दौरान वह महीनों विदेश में रहा। चेंदरू को आर्ने सक्सडॉर्फ गोद लेना चाहते थे लेकिन उनकी पत्नी एस्ट्रीड से उनका तलाक हो जाने के कारण ऐसा हो नहीं पाया। एस्ट्रीड एक सफल फोटोग्राफर थी फ़िल्म शूटिंग के समय उन्होंने चेंदरू की कई तस्वीरें खीची और एक किताब भी प्रकाशित की चेंदरू द बॉय एंड द टाइगर। 

उसकी मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से हुई उन्होंने चेंदरू को पढ़ने के लिये कहा पर चेंदरू के पिता ने उसे वापस बुला लिया। 

वहां से वापस लौटकर वह फिर से अपनी पुरानी जिंदगी में लौट गया, चकाचौंध ग्लैमर में जीने का आदी हो चुका चेंदरू गांव में गुमसुम सा रहता था। 

एक समय ऐसा आया कि गुमनामी के दुनिया में पुरी तरह से खो गया था जिसे कुछ पत्रकारों ने पुन 90 के दशक में खोज निकाला। फिल्म में काम करने के बदले उसे दो रूपये की रोजी ही मिलती थी।

    18 सितम्बर  2013 में लम्बी बीमारी से जूझते हुए इस गुमनाम हीरो की मौत हो गयी । 


आज चेंदरू द टाईगर बाय... को उसकी पूण्यतिथि पर सादर नमन. 🙏

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गुरुवार, 8 सितंबर 2022

Bhatapara City-कुछ सामान्य ज्ञान की बातें भाटापारा के सम्बन्ध में

 

भाटापारा भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में बलौदा बाजार - भाटापारा जिले में एक शहर और एक नगर पालिका है।
भाटापारा के विधायक- भाजपा के शिवरतन शर्मा (2013 से)
भाटापारा एक नगरपालिका या नगर पल्लिका शहर है। इसके पास पूरे नगर पालिका नागरिक निकाय है जो अपने दिन भर के नागरिक प्रशासन को देखता है। बेहतर प्रशासन के लिए इसे कई वार्डों में विभाजित किया गया है। इन वार्डों के लिए चुनाव हर 5 साल में एक बार होता है। भाटापारा नगर परिषद सभी घरों में पानी की आपूर्ति, सीवेज रखरखाव, नए राजमार्गों का निर्माण और संपत्ति कर का संग्रह आदि के लिए जिम्मेदार है। एक और बहुत महत्वपूर्ण स्थानीय प्रशासक बलौदाबाजार-भाटापारा जिला कलेक्टर हैं। जिला कलेक्टर वास्तव में पूरे के प्रमुख होते हैं और कई कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हैं जो पूरे जिले के भाग्य का निर्धारण करते हैं। भाटापारा दाल / पोहा / चावल मिल, और धन मंडी के लिए प्रसिद्ध है।


पुलिस स्टेशन

  • ग्रामीण पुलिस थाना चौक भाटापारा

  • सिटी पुलिस स्टेशन- रेलवे स्टेशन भाटापारा के पास स्थित है

  • पुलिस चौकी-बस स्टैंड भाटापारा

  • पुलिस चौकी -करीबाजार गांव
प्रसिद्ध आयोजन उत्सव / मेला -
  • मौली मंदिर मेला सिंगारपुर-नवरात्र मेला
  • सेमरिया घाट मेला-पुन्नी मेला
  • राम नाम सप्त मेला भाटापारा
भौगोलिक स्थान
भाटापारा 21.73 ° N 81.93 ° E पर स्थित है।
इसकी औसत ऊंचाई 261 मीटर (856 फीट) है।
आबादी
2011 की भारतीय जनगणना के अनुसार भाटापारा की जनसंख्या 96784 थी। पुरुषों की आबादी 51% और महिलाओं की संख्या 49% थी। भाटापारा की औसत साक्षरता दर 65% है, जो राष्ट्रीय औसत 59.5% से अधिक है; पुरुष साक्षरता 74% और महिला साक्षरता 55% है।




भाटापारा रेलवे स्टेशन / परिवहन
रेलवे रूट
हावड़ा-नागपुर-मुंबई मेन लाइन पर भाटापारा रेलवे स्टेशन।साउथ-ईस्ट सेंट्रल रेलवे ज़ोन। बिलासपुर और रायपुर रेल लाइन के बीच एक प्रमुख स्थान है।
रेलवे स्टेशन के पास- हाथबंद, तिल्दा, निपनिया, दागोरी, बिल्हा। और भीतपारा चावल शहर और अनाज शहर हैं।


रॉड लाइन और राजमार्ग /
ट्रंसपोर्ट के लिए मेजर रोल है ...।
स्टेट हाइवे से जुड़े NH130 से 15 किमी दूर।


प्रमुख गाँव भाटापारा  के पास
तरेंगा, सिंगारपुर, देवरी, मोपका, कड़ार , बिटकुली, करहीबाज़ार 



भाटापारा जनगणना 2011 - 2019 अवलोकन

भाटापारा छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में एक नगर पालिका शहर है। भाटापारा शहर को 27 वार्डों में विभाजित किया गया है जिसके लिए हर 5 साल में चुनाव होते हैं। भाटापारा नगर पालिका की जनसंख्या 57,537 है, जिसमें 29,161 पुरुष हैं, जबकि 28,376 महिलाएं हैं, जो कि जनगणना इंडिया 2011 द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार हैं। 


0-6 वर्ष की आयु के बच्चों की जनसंख्या 7961 है जो भाटापारा (M) की कुल जनसंख्या का 13.84% है। भाटापारा नगर पालिका में, महिला लिंग अनुपात 991 के राज्य औसत के मुकाबले 973 का है। इसके अलावा भाटापारा में बाल लिंग अनुपात 969 के छत्तीसगढ़ राज्य औसत की तुलना में लगभग 925 है। भाटापारा शहर की साक्षरता दर 70.28% के राज्य औसत से 80.92% अधिक है। भाटापारा में पुरुष साक्षरता लगभग 88.74% है जबकि महिला साक्षरता दर 72.96% है। 

भाटापारा नगर पालिका के पास 12,148 घरों पर कुल प्रशासन है, जो पानी और सीवरेज जैसी बुनियादी सुविधाओं की आपूर्ति करता है। यह नगर पालिका सीमा के भीतर सड़कों का निर्माण करने और इसके अधिकार क्षेत्र में आने वाली संपत्तियों पर कर लगाने के लिए भी अधिकृत है। 

भाटापारा धर्म डेटा 2011

नगर
भाटापारा
आबादी57,537
हिंदू92.43%
मुसलमान4.08%
ईसाई1.10%
सिख0.76%
बौद्ध0.71%
जैन0.80%
अन्य लोग0.06%
नहीं बताया हुआ0.05%
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तुरतुरिया एक प्राकृतिक एवं धार्मिक स्थल -बाल्मिकी आश्रम एवं लव कुश की जन्मस्थली

 तुरतुरिया एक प्राकृतिक एवं धार्मिक स्थल 


 तुरतुरिया एक प्राकृतिक एवं धार्मिक स्थल रायपुर जिला से 84 किमी एवं बलौदाबाजार जिला से 29 किमी दूर कसडोल तहसील से 12 और सिरपुर से 23 किमी की दूरी पर स्थित है जिसे तुरतुरिया के नाम से जाना जाता है। उक्त स्थल को सुरसुरी गंगा के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थल प्राकृतिक दृश्यों से भरा हुआ एक मनोरम स्थान है जो कि पहाड़ियो से घिरा हुआ है। इसके समीप ही बारनवापारा अभ्यारण भी स्थित है। तुरतुरिया बहरिया नामक गांव के समीप बलभद्री नाले पर स्थित है। जनश्रुति है कि त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यही पर था और लवकुश की यही जन्मस्थली थी।


  इस स्थल का नाम तुरतुरिया पड़ने का कारण यह है कि बलभद्री नाले का जलप्रवाह चट्टानों के माध्यम से होकर निकलता है तो उसमें से उठने वाले बुलबुलों के कारण तुरतुर की ध्वनि निकलती है। जिसके कारण उसे तुरतुरिया नाम दिया गया है। इसका जलप्रवाह एक लम्बी संकरी सुरंग से होता हुआ आगे जाकर एक जलकुंड में गिरता है जिसका निर्माण प्राचीन ईटों से हुआ है। जिस स्थान पर कुंड में यह जल गिरता है वहां पर एक गाय का मोख बना दिया गया है जिसके कारण जल उसके मुख से गिरता हुआ दृष्टिगोचर होता है। गोमुख के दोनों ओर दो प्राचीन प्रस्तर की प्रतिमाए स्थापित हैं जो कि विष्णु जी की हैं इनमें से एक प्रतिमा खडी हुई स्थिति में है तथा दूसरी प्रतिमा में विष्णुजी को शेषनाग पर बैठे हुए दिखाया गया है। 



              इस स्थल पर बौध्द, वैष्णव तथा शैव धर्म से संबंधित मूर्तियों का पाया जाना भी इस तथ्य को बल देता है कि यहां कभी इन तीनों संप्रदायो की मिलीजुली संस्कृति रही होगी। ऎसा माना जाता है कि यहां बौध्द विहार थे जिनमे बौध्द भिक्षुणियों का निवास था। सिरपुर के समीप होने के कारण इस बात को अधिक बल मिलता है कि यह स्थल कभी बौध्द संस्कृति का केन्द्र रहा होगा। यहां से प्राप्त शिलालेखों की लिपि से ऎसा अनुमान लगाया गया है कि यहां से प्राप्त प्रतिमाओं का समय 8-9 वीं शताब्दी है। आज भी यहां स्त्री पुजारिनों की नियुक्ति होती है जो कि एक प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है। पूष माह में यहां तीन दिवसीय मेला लगता है तथा बड़ी संख्या में श्रध्दालु यहां आते हैं। धार्मिक एवं पुरातात्विक स्थल होने के साथ-साथ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी यह स्थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
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बालसमुंद एवं सिद्धेश्वर मंदिर : पलारी छत्तीसगढ़-Bhatapara Tourism-

 बलौदाबाजार-भाटापारा जिले में बलौदाबाजार से रायपुर रोड पर 25 कि॰मी॰ तथा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से बलोदाबाजार रोड पर 70 कि॰मी॰ दूर स्थित पलारी ग्राम में बालसमुंद तालाब के तटबंध पर यह शिवालय स्थित है। इस मंदिर का निर्माण लगभग ७-८वीं शती ईस्वी में हुआ था। ईष्टिका निर्मित यह मंदिर पश्चिमाभिमुखी है। मंदिर की द्वार शाखा पर नदी देवी गंगा एवं यमुना त्रिभंगमुद्रा में प्रदर्शित हुई हैं।



प्रवेश द्वार स्थित सिरदल पर शिव विवाह का दृश्य सुन्दर ढंग से उकेरा गया है एवं द्वार शाखा पर अष्ट दिक्पालों का अंकन है। गर्भगृह में सिध्देश्वर नामक शिवलिंग प्रतिष्ठापित है। इस मंदिर का शिखर भाग कीर्तिमुख, गजमुख एवं व्याल की आकृतियों से अलंकृत है जो चैत्य गवाक्ष के भीतर निर्मित हैं। विद्यमान छत्तीसगढ़ के ईंट निर्मित मंदिरों का यह उत्तम नमूना है। 



जनश्रुतियों के अनुसार इस मंदिर एवं तालाब का निर्माण नायकों ने छैमासी रात में किया गया। इस अंचल में घुमंतू नायक जाति होती है जो नमक का व्यापार करती थी। उनका कबीला नमक लेकर दूर दूर तक भ्रमण करता था। कहते हैं कि इस पड़ाव पर नायकों को जल की समस्या हमेशा बनी रहती थी। उन्होने यहां तालाब बनवाने का कार्य शुरु किया। (नायकों द्वारा तालाब निर्माण की कहानी अन्य स्थानों पर भी सुनाई देती हैं, खारुन नदी के उद्गम पेटेचुआ का तालाब भी नायकों ने बनवाया था। इससे प्रतीत होता है कि नायक अपने व्यापार के मार्ग में जलसंसाधन का निर्माण करते थे।) 



तालाब का निर्माण होने के बाद इस तालाब में पानी नहीं आया तो किसी बुजूर्ग के कहने से नायकों के प्रमुख ने अपने नवजात शिशु को परात में रख कर तालाब में छोड़ दिया, इसके बाद तालाब में भरपूर पानी आ गया और यह लबालब भर गया। बालक भी सुरक्षित परात सहित उपर आ गया। तब से इस तालाब का नाम बालसमुंद रखा गया। इस तालाब का विस्तार 120 एकड़ में है। जल साफ़ एवं सुथरा है। तालाब का पानी कभी नहीं सूखता। 



तालाब के मध्य में एक टापू बना हुआ है, कहते हैं इसका निर्माण तालाब खोदने के दौरान तगाड़ी झाड़ने से झड़ी हुई मिट्टी से हुआ। इस मंदिर का जीर्णोद्धार तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री बृजलाल वर्मा ने 1960-61 के दौरान करवाया तथा गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित करवाया। इस स्थान पर प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा दे दिन मेला भरता है, जिसमें हजारों श्रद्धालू आकर बालसमुंद में स्नान कर पूण्यार्जित करते हैं।

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सोनबरसा रिजर्व फॉरेस्ट-Nature Safari Balodabazar Chhattisgarh

 जिला मुख्यालय से महज 3 किमी दूर ग्राम पंचायत लटुआ स्थित सोनबरसा रिजर्व फॉरेस्ट को नेचर सफारी के रुप में विकसित किया गया है । इसमें डियर पार्क भी स्थित है । इस जंगल सफारी में लोगों को जिप्सी से भ्रमण करने की सुविधा है । यहॉ पर साइकिलिंग का मजा भी लिया जाअ सकता है । बच्चों के मनोरंजन के साथ ही पिकनिक मनाने की भी अच्छी जगह वन विभाग बनाई गई है ।



सोनबरसा - मुख्य द्वार

डीएफओ विश्वेश कुमार और रेंजर राकेश कुमार चौबे ने सोनबरसा के जंगल को नेचर सफारी के रूप में विकसित किया है। इसके चलते आज जिले को एक अलग पहचान मिली है। अफसरों ने बताया कि चारों तरफ से सीमेंट प्लांट से घिरा होने के चलते जिले के लोगों, प्लांट कर्मचारियों और वन्य जीव प्रेमियों को दिनभर की भागदौड़ और थकान के चलते सुस्ताने या फिर पिकनिक मनाने के लिए कोई ढंग की जगह नहीं थी। इस कारण वनविभाग ने लोगों को शहर के पास ही प्रकृति सौंदर्य व सुकून के माहौल के लिए सुविधा उपलब्ध कराई है, जहां वे छुट्टी या फिर परिवार सहित पिकनिक मना सके। 

सोनबरसा - विश्राम गृह

ये जानवर जंगल में मौजूद : जंगल में इस समय करीब 125-130 हिरण, 200 खरगोश, 285-300 के करीब जंगली सुअर, 80-85 अजगर, 10-12 भेड़िया, 8-9 जैकाल, मोनिटर लिजेर्ट, नेवला और 6-7 दुर्लभ प्रजाति की जंगली बिल्लियां हैं। तालाबों के पास बर्ड फारेस्ट कंजर्वेशन के तहत पक्षियों के बैठने की व्यवस्था है। जहां उनके लिए भरपूर भोजन की व्यवस्था की गई है। 

सोनबरसा - जलपान केंद्र-बलाैदाबाजार/लटुवा. सोनबरसा जंगल में बना कैफे और पार्क। 

सोनबरसा - सफारी भ्रमण
890 हेक्टेयर में फैला जंगल 

890 हेक्टेयर में फैले सोनबरसा जंगल को जंगल सफारी विकसित करने का काम पूरा हो चुका है। पूरे जंगल को बाउंड्रीवॉल से घेरने की तैयारी चल रही है। हालांकि जंगल चारों तरफ से मजबूत जालियों से घिरा हुआ है। 

सोनबरसा - भ्रमण के लिये जिप्सी

पार्किंग समेत प्रवेश शुल्क सिर्फ 10 रुपए

सोनबरसा - वन्य प्राणियों के लिये डबरी

गेट एंट्री फीस प्रति व्यक्ति 10 रुपए रखा गया है, जिसमे पार्किंग शुल्क भी शामिल है। पिकनिक मनाने के लिए लोग रिवार के साथ खाने-पीने का सामान भी ले जा सकते हैं या फिर वहां बने कैफे में स्वादिष्ट व्यंजनों का मजा ले सकते हैं। पर्यटकों के रुकने के लिए रेस्ट हाउस और एक घर भी बनाया गया है, जहां कम चार्जेज देकर 24 घंटे के लिए बुक कराया जा सकता है। 

सोनबरसा - साईकिल से भ्रमण हेतु

सोनबरसा - समाचार पत्र में
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गिरौदपुरी धाम-महानदी और जोंक नदियों के संगम से स्थित, गिरौधपुरी धाम छत्तीसगढ़ के सबसे सम्मानित तीर्थ स्थल

गिरौदपुरी धाम छत्तीसगढ़

अगर आप छत्तीसगढ़ में सबसे लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक गिरौदपुरी धाम (Giroudpuri Dham) में घूमने-फिरने की सोच रहे हैं तो आपके लिए एक शानदार मौका आ रहा है.


छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 120 किलोमीटर दूर गिरौदपुरी धाम सतनामी समाज के लोगों का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है. यह सतनाम पंथ के संस्थापक गुरु घासीदास की जन्मस्थली है. गिरौदपुरी में विशाल स्तंभ जैतखाम (Jaitkham) का निर्माण किया गया है. यह स्तंभ दिल्ली की कुतुब मीनार से भी ज्यादा

ऊंचा है.



बलौदाबाजार से 40 किमी दूर तथा बिलासपुर से 80 किमी दूर महानदी और जोंक नदियों के संगम से स्थित, गिरौधपुरी धाम छत्तीसगढ़ के सबसे सम्मानित तीर्थ स्थलों में से एक है। इस छोटे से गांव, जिसमें आध्यात्मिकता और इतिहास  के गहरे संबंध हैं, छत्तीसगढ़ के सतनामी पंथ, गुरु घासीदास के संस्थापक का जन्मस्थान है। इस क्षेत्र के एक किसान परिवार में पैदा हुए, एक दिन वह छत्तीसगढ़ में एक बहुत सम्मानित व्यक्ति गुरु घासीदास बन गया। कहा जाता है कि उन्होंने औरधारा वृक्ष के नीचे लंबे समय तक तपस्या की है जो अभी भी वहां है। इस पवित्र स्थान को तपोभूमी भी कहा जाता है। चरन कुंड एक पवित्र तालाब से एक और किलोमीटर प्राचीन अमृत कुंड स्थित है, जिसका पानी मीठा माना जाता है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, मानवता के पुजारी संत गुरु घासीदास जी का जन्म गिरौदपुरी में 18 दिसंबर सन 1756 को हुआ था. युवा अवस्था में उन्होंने इसी गांव से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर घने जंगलों से परिपूर्ण छाता-पहाड़ के नाम से प्रसिद्ध पर्वत पर कठोर तपस्या की थी और गिरौदपुरी पहुंचकर लोगों को सत्य, अहिंसा, दया, करुणा और परोपकार के उपदेशों के साथ मानवता का संदेश दिया था.


जैत खाम्भ, गिरौदपुरी धाम


मुख्य मंदिर, गिरौदपुरी धाम

छत्तीसगढ़ की राजधानी से करीब 145 किलोमीटर दूर स्थित बाबा गुरु घासीदास की जन्मस्थली गिरौदपुरी, जहां विशाल स्तंभ ‘जैतखाम’ का निर्माण किया गया है. यह स्तंभ दिल्ली की कुतुब मीनार से भी ज्यादा ऊंचा है. यह स्तंभ कई किलोमीटर दूर से ही दिखने लगता है. सफेद रंग के इस स्तंभ का वास्तुशिल्प इतना शानदार है कि दर्शकों की आंखें ठिठक जाती हैं. दिन ढलते ही दूधिया रोशनी में जैतखाम की भव्यता देखते ही बनती है.



मुख्य द्वार, गिरौदपुरी धाम

गिरौदपुरी सतनामी समाज के लोगों का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है. यहां हर साल फागुन पंचमी से तीन दिन का मेला लगता है, जिसमें पांच लाख से भी ज्यादा लोग हिस्सा लेते हैं. हालांकि सालभर यहां भक्तों का आना-जाना लगा रहता है.

गिरौदपुरी का जैतखाम वास्तुशिल्प का बेजोड़ नमूना है. इसकी सुंदरता देखते ही बनती है. जैतखाम की छत पर जाने के लिए दो तरफ से प्रवेशद्वार और सीढ़ियां बनाई गई हैं. दोनों तरफ 435-435 सीढ़ियां हैं. दोनों ओर सीढ़ियां इस तरह से बनाई गई हैं कि अलग-अलग चलने पर भी ऐसा आभास होता है कि लोग एक साथ चल रहे हों. दोनों सीढ़ियां एक-दूसरे के ऊपर दिखाई देती हैं. दूसरी तरफ चलने वाले लोगों को लगता है कि पास चल रहे लोगों के साथ मिलाया जा सकता है, लेकिन सीढ़ियां जहां छत पर खत्म होती हैं लोगों का मिलन वहीं संभव है.



इस तरह का डिजाइन जयपुर के जंतर-मंतर और लखनऊ की भूल-भूलैया में भी इस्तेमाल किया गया है. गिरौदपुरी की छत पर जाने के लिए दो लिफ्ट भी हैं. जैतखाम के चारों ओर खूबसूरत गार्डन है. साइट इंजीनियरों के अनुसार गार्डन को देशी-विदेशी फूलों से सजाया गया है. गार्डन का विस्तार आगरा के ताजमहल और दिल्ली के मुगल गार्डन की तर्ज पर किया जा रहा है. कुतुब मीनार से ज्यादा ऊंचे जैतखाम बनाने की योजना अजीत जोगी की सरकार ने तैयार की थी, पर उसे अमली जामा रमन सिंह सरकार ने पहनाया. इस स्तंभ का निर्माण 2007-08 में 51.43 करोड़ रुपये की लागत से शुरू हुआ.



गिरौदपुरी में बाबा गुरु घासीदास के प्राचीन मंदिर से कुछ कदमों की दूरी पर स्थित जैतखाम के मुख्य प्रवेशद्वार की सीढ़ियों से उतरते ही ताजमहल की तर्ज पर विशाल वॉटर बॉडी बनाई गई है. रात में इस पूल के पानी में जैतखाम की परछाई भी दिखाई देती है. परछाई से ऐसा लगता है कि एक ही स्थान पर दो जैतखाम खड़े हैं. जैतखाम की ऊंचाई 77 मीटर (243 फीट) है, जबकि कुतुब मीनार 72.5 मीटर (237 फीट) ऊंची है.

जैतखाम को बनाने में सात खंभों का उपयोग किया गया है. जैतखाम के अंदर एक विशाल हॉल है. इसके अलावा ऊपर चढ़ते हुए जैतखाम की गोलाई से गिरौदपुरी का नजारा भव्य नजर आता है. पहाड़ी भी ऐसे लगती है मानो उन्हें हाथों से छुआ जा सकता है.

जैतखाम से बाबा घासीदास का मंदिर भी साफ दिखता है. लोक निर्माण विभाग की ओर से सड़क भी बनाई गई है, इस अद्भुत जैतखाम को देखने देशभर के लोग पहुंच रहे हैं.


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बारनवापारा वन्यजीव अभयारण्य अपने हरे भरे वनस्पति और अद्वितीय वन्य जीवन साक्षात् उदाहरण

 यह अभयारण्‍य, बलौदाबाजार जिले में स्थित है जो 245 वर्ग किमी. के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इसे वन्‍यजीव अभयारण्‍य के रूप में 1972 में वन्‍यजीवन अधिनियम के तहत घोषित किया गया था।

यह अभयारण्‍य, समतल और पहाड़ी क्षेत्र का मिश्रण है जो 265 मीटर से 400 मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस अभयारण्‍य में चार सींग वाले हिरण, बाघ, तेंदुए, जंगली भैंसें, अजगर, बार्किंग हिरन, हाइना, साही, चिंकारा और ब्लैक बक्‍स आदि देखने को मिलते है। यहां पक्षी प्रेमियों के लिए काफी कुछ देखने को है।
यहां कई प्रकार के पक्षी जैसे – बगुले, बुलबुल, इरगेट्स और तोता आदि की कई प्रजातियां देखी जा सकती है। यह वन क्षेत्र शुष्क पर्णपाती पेड़ों और अन्य पेड़ों से समृद्ध है जिनमें तेंदू, बीर, सेमल, साक, टीक और बेंत आदि शामिल है।
छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के उत्तरी भाग में स्थित है, बारनवापारा वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र में बेहतरीन और महत्वपूर्ण वन्यजीव अभयारण्यों में से एक है. 1972 के वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत 1976 में स्थापित, अभयारण्य अपेक्षाकृत केवल 245 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करने के लिए एक छोटे से एक है. क्षेत्र की स्थलाकृति 265-400 लाख टन के बीच लेकर ऊंचाई के साथ फ्लैट और पहाड़ी इलाके के शामिल हैं. बारनवापारा वन्यजीव अभयारण्य अपने हरे भरे वनस्पति और अद्वितीय वन्य जीवन के लिए जाना जाता है.
वनस्पति और जीव – बारनवापारा वन्यजीव अभयारण्य


बारनवापारा वन्यजीव अभयारण्य की वनस्पति मुख्यतः सागौन, साल, बांस और प्रमुख पेड़ों की जा रही टर्मीनालिया साथ उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन के शामिल हैं. अभयारण्य में पाए अन्य प्रमुख पौधों Semal, महुआ, बेर और तेंदु शामिल हैं. अमीर और रसीला वनस्पति कवर अभयारण्य में वन्य जीवन की एक विस्तृत विविधता का समर्थन करता है. बारनवापारा अभयारण्य शामिल हैं बाघ, स्लॉथ बीयर, उड़ने वाली गिलहरी, सियार, चार सींग वाला हिरण, तेंदुए, चिंकारा, ब्लैक बक, जंगली बिल्ली, बार्किंग डीयर, साही, बंदर, बायसन, धारीदार हाइना, जंगली कुत्ते, चीतल, के प्रमुख वन्यजीव सांभर, नील गाय, गौर, Muntjac, कुछ नाम करने के लिए जंगली सूअर, कोबरा, अजगर. अभयारण्य भी प्रमुख तोते, बुलबुल, सफेद पूंछ वाले जानवर, ग्रीन Avadavat, कमजोर kestrels, मोर, लकड़ी Peckers, रैकेट पूंछ ड्रोंगो, Egrets, और हेरोन्स नाम करने के लिए किया जा रहा है कुछ के साथ एक बड़े आकार का पक्षी आबादी है. बारनवापारा वन्यजीव अभयारण्य के दौरे के सभी वन्य जीवन के प्रति उत्साही, पक्षी प्रेमियों और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक रोमांचक और पुरस्कृत अनुभव हो वादा किया है.



बार-नवापारा



बारनवापारा में रहने के लिए आवासशाला

बार नवापारा में विचरण करते जंगली जानवार

बार नवापारा में रहने के लिए कुटिया

बहती नदी के किनारे रहने के लिए कुटिया

बार नवापारा के घने जंगली क्षेत्र

बार नवापारा में बहती नदी

बारनवापारा में रहने के लिए आवासशाला
बार नवापारा में विचरण करते जंगली जानवार
बार नवापारा में रहने के लिए कुटिया
बहती नदी के किनारे रहने के लिए कुटिया

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माँ मावली देवी मंदिर शक्तिपीठ सिंगारपुर की कुछ किवदंतियों के साथ झलकियाँ

 सिंगारपुर छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के भाटापारा की तहसील का एक गाँव है। सिंगारपुर अपनी तहसील मुख्य शहर भाटापारा से 11.8 किमी दूर है, जिला मुख्यालय बलौदाबाजार से 34.8 किमी दूर है और इसकी राजधानी रायपुर से 75 किमी दूर है। सिंगारपुर में, देवी मौली माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि शिव, ब्रह्मा और विष्णु की इच्छा से मौली माता यहां प्रकट हुई थीं। माता मौली की मूर्ति प्राचीन काल में स्थापित की गई थी।


400 साल पुरानी माता के भक्त देश में ही नहीं विदेशों में भी है। लोग मन की मनौती के लिए यहां हर साल 10000 के लगभग  ज्योत जलाते आ रहे हैं। मां मावली के मंदिर के संबंध में कई प्रकार की धारणाएं है।मान्यता है कि मंदिर के प्रांगण में स्थित कुंड के पानी में नहाने के बाद माता के दर्शन करने से रोग-दोष सहित सभी दुख दूर हो जाते हैं। भाटापार शहर से लगभग 12 किलोमीटर दूर ग्राम सिंगारपुर में मां मावली माता का मंदिर स्थित है। हर साल नवरात्र में माता की विशेष श्रृंगार को देखने हर पूरे नौ दिन भक्तों का तांता लगा रहता है। पढि़ए पूरी खबर..

माँ मावली मंदिर की स्थापना के सम्बन्ध में 

इस मंदिर एवं माता की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। किवदंतियों के अनुसार मां मावली का मंदिर कब और किसने बनाया इसका कोई ठोस प्रमाण आज तक नहीं मिला है। लोगों का कहना है कि लगभग 400 वर्ष पहले कोढ़ से पीड़ित एक व्यक्ति जब वहां घने जंगल होते थे तब वनोपज  की तलाश में वहां गया तो उस जंगल में स्थित छोटे कुंड में नहाने से उनका कोढ़ अगले दिन ठीक हो गया था, तब उसके द्वारा कुंद में तलाश करने पर माँ मावली की की मूर्ति दिखी जिसे उसी कुंड के किनारे स्थापित किया गया ,तथा उक्त कुंड आज तालाब / सागर के रूप में विद्यमान है. मां मावली का मंदिर 350 से 400 वर्ष पुराना हो सकता है। आज के समय में तरेंगा के महामाया मंदिर और सिंगारपुर मां मावली की ख्याति लगातार बढ़ती ही जा रही है। प्राचीन काल से ही दोनों स्थानों पर गोड़ जाति Ganjan, Gulal Dayna mata  अर्चना किया करते थे, और आज भी मावली मां की पूजा अर्चना उन्हीं गोड़ पुजारियों के वंशज करते आ रहे हैं।
Facebook-माँ मावली सिंगारपुर

मां मावली मंदिर के नीचे एक बावली है। इसे लेकर मान्यता कि किसी भी प्रकार कीट प्रकोप अथवा महामारी फैलने पर बावली का पानी ले जाकर छिड़काव करने से प्रकोप दूर हो जाता है।


पूर्व में यहां पर प्रत्येक नवरात्रि के नवमी पर मां के समक्ष बलि चढ़ाए जाने की प्रथा थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से साधुओं के अनुरोध और प्रशासन के हस्तक्षेप से बलि चढ़ाने का कार्य बंद कर दिया गया है।


यहां पर प्रत्येक नवरात्र पर श्रद्धालु भक्तों द्वारा मनोकामना ज्योति कलश जलाई जाती है। भारत सहित विदेशों में बसे लोग भी ज्योति कलश स्थापित कराते हैं।


इसमें आस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा एवं यूरोप जैसे देश में रहने वाले भारतीय शामिल है । नवरात्रि पर यहां विशेष पूजा की जाती है। प्रतिदिन सैकड़ों लोग मंदिर में मनोकामना लेकर देवी दर्शन के लिए आते हैं।



नवरात्रि पर यहां नौ दिनों का मेला                                                       

मां मावली के दर्शन के लिए प्रशासन द्वारा कोई ठोस व्यवस्था नहीं की जाती है। सिंगारपुर के युवा और मंदिर में देखरेख करने वाले ट्रस्ट के सदस्य ही पूरी व्यवस्था करते हैं।


Chhattisgarh शासन  ने सिंगारपुर को मिनी तीर्थाटन एवं पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा की थी,I पिछले कुछ वर्षों से ट्रस्ट  द्वारा नवरात्रि के अवसर पर मावली महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है।


मनौतियां पूर्ण होने के परिणाम                                                         

अंचल सहित कोलकाता, बालाघाट, अमरावती, शिवनी, नागपुर, बांदा और उत्तर प्रदेश के कई शहरों सहित विदेशों में बसे श्रद्धालुओं द्वारा मनोकामना ज्योति कलश जलाई जाती है।


अब मंदिर के देखभाल के लिए एक ट्रस्ट का गठन कर दिया गया है। ट्रस्ट के माध्यम से ही मंदिर का रखरखाव किया जा रहा है। ओडिशा के कारीगरों को बुलाकर मां मावली के मंदिर को भव्य रूप दिया गया है। गोड़ समाज ने जहां अपने आराध्य देवी मानकर धर्मशाला का निर्माण कराया है।

 
वहीं, अहीर समाज का लक्ष्मीनारायण मंदिर, झेरिया यादव समाज, देवांगन समाज का राम जानकी मंदिर, कुर्मी बया, सतनामी समाज आदि विभिन्न समाजों द्वारा निर्मित 18 से 20 भव्य मंदिर है।


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